गिरनार को प्रभू दत्तात्रेय की तपोभूमी कहा जाता हैं. यहा पे भगवान श्री दत्तात्रेय ने 12,000 साल तपश्चर्या की. इस स्थान को भगवान दत्तात्रय का अक्षय निवास स्थान भी कहा जाता हैं. अक्षय याने क्षय न होनेवला, अनश्वर. जितने भी साधू संत सिद्ध योगी महायोगी हूए हैं उनको भगवान दत्तात्रेय के दर्शन जादा कर के इसी स्थान पर हुये हैं. आज भी योगी महायोगी सिद्ध पुरुष इसी स्थान मे दृश्य अदृश्य रूप में अपने अध्यात्मिक उन्नती के लिये वास्तव्य किये हूये हैं.
गिरनार पर्वत चलके जाने के लिये कुल 10000 सिढीया हैं. अब हम रोपवे से 7000 सिढीयोतक का सफर तै करते हैं. रोपवे से उपर पोहचने के बाद सामने ही माता अंबाजी का स्वयुंभ जागृत स्थान हैं. यह मा पार्वती के शक्तीपिठोमे से एक हैं. उसके आगे थोडे ही दुरी पर गुरु गोरक्षनाथ का तपश्चर्या स्थान हैं. यह स्थान गुरु शिखर से उचा हैं. गुरु शिखर याने भगवान दत्तात्रेय का तपश्चर्या स्थान. आम तोर पर गुरु का स्थान शिष्य से उपर होता है. लेकीन गोरक्षनाथजी ने अपने गुरु दत्तात्रेय से प्रार्थनाकी थी के साधना करते वक्त मुझे आप के चरण निरंतर दिखे. गुरु के चरण निरंतर दिखने के लिये शिष्यका यह स्थान गुरु से उचाई पर हैं. यहा पर गोरक्षनाथजी की धूनी भी हैं. वहा से आगे थोडी ही दुरी पर गुरु शिखर हैं. जो की दत्तात्रेय भगवान का तपश्चर्या स्थान हैं. यहापे दत्तात्रेय भगवान के चरण पादुका ओर मूर्ती हैं. चरण पादुका के दर्शन करके थोडा नीचे आने के बाद अखंड धुनी और कमंडलू कुंड हैं. इस के बारेमे ऐसी आख्यायिका हैं की, भगवान दत्तात्रेय जब तपश्चर्या मे थे तब सृष्टी मे अकाल पडा था. अकाल से जनता को बाचाने के लिये माता अनुसया ने दत्तात्रेय भगवान को आवाज दी. ध्यान अवस्था से बाहर आते ही भगवान दत्तात्रेय का हात कमंडलू को लगा ओर कमंडलू निचे गिर गया. कमंडलू ओर पानी दोन्हो अलग अलग जगह पर गिर गये. जहा पानी गिरा वहा पे गंगा निर्माण हुई और जहा पे कमंडलू गिरा वहा पे अग्नी निर्माण हुआ.
उसे ही हम धुनी कहते हैं. वह धुनी सदियोसे आज तक अखंड चालू हैं. उसे हर सोमवार को सुभे 9 बजे प्रज्वलित किया जाता हैं. यह धुनी प्रज्वलित करने के लिये किसी अन्य अग्नी या इंधन की जरुत नही लगती. उस धुनी मे केवल पीपल की सुखी लकडी रख्यी जाती हैं, और उसके उपर घी डाला जाता हैं. और जब धुनी प्रज्वलित हो जाती हैं तब कई साधकों को भगवान दत्तात्रेय के अग्नी स्वरूप दर्शन हो जाते हैं. इसी स्थान मे साल के बारह मास अन्नदान चालू रहता हैं.